Sunday, December 21, 2008

तुम आज हंसते हो हंस लो

तुम आज हंसते हो हंस लो

तुम आज हंसते हो हंस लो मुझ पर ये आज़माइश ना बार-बार होगी

मैं जानता हूं मुझे ख़बर है कि कल फ़ज़ा ख़ुशगवार होगी

रहे मुहब्बत में जि़न्दगी भर रहेगी ये कशमकश बराबर,

ना तुमको क़ुरबत में जीत होगी ना मुझको फुर्कत में हार होगी

हज़ार उल्फ़त सताए लेकिन मेरे इरादों से है ये मुमकिन,

अगर शराफ़त को तुमने छेड़ा तो जि़न्दगी तुम पे वार होगी

ख़्वाजा मीर दर्द

1721 - 1785

Sunday, December 7, 2008

जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है

अदम गोंडवी कहते हैं,

वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई है

रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है

Wednesday, December 3, 2008

अब डरने लगा हूँ

पहले डरता नही था पर अब डरने लगा हूँ

तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,

रोज़ बस से आफिस जाता हूँ ,

इसलिए आस पास की चीज़ों पर ध्यान लगता हूँ

सीट के नीचे किसी बम की शंका से मन ग्रसित रहता है

कभी कोई लावारिस बैग भ्रमित करता है ।

ख़ुद से ज़्यादा परिवार की फ़िक्र करता

इसलिए हर बात मे उनका ज़िक्र करता हूँ

रोज़ अपने चैनल के लिए ख़बर करता हूँ

और किसी रोज़ ख़ुद ख़बर बनने से डरता

मैं भी एक आम हिन्दुस्तानी की तरहां रहता हूँ

इसलिए रोज़ तिल तिल कर मरता हूँ

हालात यही रहे तो किसी रोज़ मैं भी

किसी सर फिरे की गोली या बम का शिकार बन जाऊँगा

कुछ और न सही पर बूढे अम्मी अब्बू के आंसुओं का सामान बन जाऊँगा

। इस तरह एक नही कई जिनदगियाँ तबाह हो जाएँगी

बहोत न सही पर थोडी ही

दहशतगर्दों की आरजुओं की गवाह हो जाएँगी

। इसीलिए मैं अब डरने लगा हूँ

हर रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,

तिल तिल कर मरने लगा हूँ ।

Thursday, October 9, 2008

"हम फिदाए लखनऊ"

आज आपके लिए लाया हूँ हमारे एक ख़ास साथी हिमांशु की एक नज़्म ...... हिमांशु लखनऊ से ही हमारे साथ रहे हैं और हाल फिलहाल भोपाल में सहाफियत के गुर सीख रहे है....ये नज़्म उन्होंने लखनऊ को नजर की है !
गौर फ़रमाएँ

ऐ सरज़मीने लखनऊ
तुझसे दूर होकर
हम दिन गुजारते हैं
तन्हाइयों में रोकर

कैसे कहें हमारे लिए
तू क्या है लखनऊ
बसता है दिल जहाँ
वो जगह है लखनऊ

हम तुझसे आशना थे
वो वक्त और था
हम भी थे लखनवी
क्या खूब दौर था

शहरे वफ़ा तुझसे मेरी
पहचान है पुरानी
रौशन तेरे बाज़ार या
गलियाँ हों जाफरानी

मुसलमाँ जहाँ होली में
चेहरों को रंगे रहते
हिंदू भी मुहर्रम में
थे मर्सिया कहते

गुस्से में भी जुबां से
आप निकलता था
रस्ता बताने वाला
साथ में चलता था

जिसको न दे मौला
उस पर भी इनायत
मशहूर है अजदाद ने
छोड़ी नही गैरत

शेरो-सुखन से लोग
बातों की पहल करते
महफिल में बुला कर
क्या खूब चुहल करते

पतंगों से आसमान की
जागीर झटकते थे
वो ढील छोड़ देते
हम गद्दा पटकते थे

मकबूल बहुत है
कबाब जहाँ का
बेमिसाल आज भी
शबाब जहाँ का

हमको है याद आती
तेरी शाम अब भी
रौशन है ज़हनो दिल में
तेरा नाम अब भी

गर्दिशे हालात से
मजबूर हो गए
न चाहते हुए भी
तुझसे दूर हो गए

हैं इस तरह यहाँ हम
जैसे की हों कफस में
शामिल है ऐ वतन तू
अपनी हर नफस में

चाह कर भी तुझको
न भूल पाये लखनऊ
कहते यही मुक़र्रर
"हम फिदाए लखनऊ"

-हिम लखनवी

Friday, October 3, 2008

अदम गोंडवी ... के अंदाज़ में

ये दौर मुल्क के लिए मुश्किलों का दौर है.....भरोसा दोनों ओर का टूटा है और हालत रोज़ बा रोज़ बदसे बदतर होते जा रहे हैं ! ऐसे में अचानक आज शायर / कवि अदम गोंडवी की ये ग़ज़ल हाथ लगी तो सोचा ये सवा शेर आपकी नज़र कर दूँ ......तो पढ़ें और गुनें !

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये

अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है

दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये

ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले

ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये

हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ

मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये

छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़

दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये


Saturday, September 13, 2008

रेत से बुत न बना

अहमद नदीम क़ासमी : जन्म स्थान सरगोधा (अब पाकिस्तान में)

प्रमुख कृतियाँ : 'धड़कनें' (1962) जो बाद में 'रिमझिम' के नाम से प्रकाशित हुई और फिर इसी नाम से जानी गई । जलाल-ओ-जमाल, शोल-ए-गुल, दश्ते-वफ़ा, मुहीत (सभी कविता-संग्रह)

रेत से बुत न बना

रेत से बुत न बना मेरे अच्छे फ़नकार

एक लम्हे को ठहर मैं तुझे पत्थर ला दूँ

मैं तेरे सामने अम्बार लगा दूँ

लेकिन कौन से रंग का पत्थर तेरे काम आएगा

सुर्ख़ पत्थर जिसे दिल कहती है बेदिल दुनिया

या वो पत्थराई हुई आँख का नीला पत्थर

जिस में सदियों के तहय्युर के पड़े हों डोरे

क्या तुझे रूह के पत्थर की जरूरत होगी

जिस पे हक़ बात भी पत्थर की तरह गिरती है

इक वो पत्थर है जिसे कहते हैं तहज़ीब-ए-सफ़ेद

उस के मर-मर में सियाह ख़ून झलक जाता है

इक इन्साफ़ का पत्थर भी होता है मगर

हाथ में तेशा-ए-ज़र हो, तो वो हाथ आता है

जितने मयार हैं इस दौर के सब पत्थर हैं

शेर भी रक्स भी तस्वीर-ओ-गिना भी पत्थर

मेरे इलहाम तेरा ज़हन-ए-रसा भी पत्थर

इस ज़माने में हर फ़न का निशां पत्थर है

हाथ पत्थर हैं तेरे मेरी ज़ुबां पत्थर है

रेत से बुत न बना ऐ मेरे अच्छे फ़नकार

Friday, August 29, 2008

हाथ उठे हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं / फ़राज़

हाथ उठे हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं
की इबादत भी वो जिस की जज़ा कोई नहीं



ये भी वक़्त आना था अब तो गोश हर आवाज़ है
और मेरे बर्बाद-ए-दिल में सदा कोई नहीं



आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं



वक़्त ने वो ख़ाक उड़ाई है के दिल के दश्त से
क़ाफ़िले गुज़रे हैं फिर भी नक़्श-ए-पा कोई नहीं



ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं



कैसे रास्तों से चले और किस जगह पहुँचे "फ़राज़"
या हुजूम-ए-दोस्ताँ था साथ या कोई नहीं

Wednesday, August 27, 2008

फ़राज़ की यादें

ab ke ham bichhRe to shaayad kabhii KhvaaboN meN mileNjis tarah suukhe hu’e phuul kitaaboN meN mileN
(bichhRe : part company; Khvaab : dreams; suukhe : dry)
DhuuNDh ujRe hu’e logoN meN vafaa ke motiiye Khazaane tujhe mumkin hai KharaaboN meN mileN
(ujRe : ruined; motii : pearls; mumkin : possible; Kharaab : blemish)
tuu Khudaa hai na meraa ishq farishtoN jaisaadonoN insaaN haiN to kyuN itne hijaaboN meN mileN
(farishtoN: angels; hijaab : veil)
Gham-e-duniyaa bhii Gham-e-yaar meN shaamil kar lonashaa baRhtaa hai sharabeN jo sharaaboN meN mileN
(Gham-e-duniyaa : mondane sufferings; Gham-e-yaar : sufferings due to beloved; shaamil : incorporate; nashaa : intoxication; sharaabeN : wines)
aaj ham daar pe kheNche gaye jin baatoN parkyaa ajab kal vo zamaane ko nisaaboN meN mileN
(daar : gallows; ajab : surprise; zamaane : era; nisaaboN : benchmarks )
ab na vo maiN huN na tuu hai na vo maazii hai “Faraaz”jaise do saaye tamannaa ke saraaboN meN mileN
(maazii : past; saaye : shadows; tamannaa : desire; saraab : illusion, mirage)
Ahmed Faraz

अहमद फ़राज़ - बुझ गया चिराग

१४ जनवरी १९३१ को नव्शेरा पाकिस्तान मे एक बच्चे की विलादत हुई .इस बच्चे की सलाहियतों ने इसे आम से ख़ास बना दिया .इनके वालिद ने इनका नाम अहमद रखा जो आगे चल कर अहमद फ़राज़ के नाम से मशहूर हुए .आप ने पेशावर यूनिवर्सिटी से तालीम हासिल की .उर्दू और पर्शियन मे आपको महारत हासिल थी .आपकी शाएरी मे उस दौर के हालात का तफ्सेरा भी है और खुशनूदगी भी .अली सरदार जाफरी और फैज़ अहमद फैज़ जैसे शायेरों के साथ आपका नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है.२४ अगस्त २००८ को वाक़े अहमद फ़राज़ की वफ़ात अदबी माशरे के लिए ग़म का बाएस है ।
कठिन है राहगुज़र थोरी दूर साथ चलोबहुत करा है सफर थोडी दूर साथ चलो (kaThin : difficult; raahguzar : path) तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है मैं जानता हूँ मगर थोडी दूर साथ चलो नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नही बड़ा मज़ा हो अगर थोडी दूर साथ चलो ये एक शब् की मुलाक़ात भी ग़नीमत हैकिस है कल की ख़बर , थोरी duur saath chalo अभी तो जाग रहे हैं चिराघ राहों के अभी है दूर सहर थोडी दूर साथ चलो (sahar : dawn) तवाफे मंजिले जानां हमें भी करना है “फ़राज़ ” तुम भी agar थोडी दूर साथ चलो tavaaf-e-manzil-e-jaanaaN : circumabulation of the house of beloved) Ahmed Faraz

Sunday, July 27, 2008

चलते चलते ......

ये बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है हमारे युवा साथी हिमांशु ने, जिनकी लगभग सारी रचनाएँ उम्दा होती हैं। हिमांशु पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं और इस समय जनसत्ता में प्रशिक्षु हैं ..........

चलते - चलते फिर कोई हँसी की बात कर

अपनी बात कर मत किसी की बात कर

भूल जा सफर में बहुत ग़म तुझे मिला

जो मरहला हसीन था उसी की बात कर

अपनों के भेस में यहाँ अय्यार छिपे हैं

बेखौफ मत दरबार में कुर्सी की बात कर

नागिन के इंतकाम की खबरें हुईं बहुत

मायूस किसानों की खुदकुशी की बात कर

जिंदगी बचपन को क्यों होटल पे ला दिया

उसको गले लगा कोई खुशी की बात कर ..............

हिमांशु बाजपाई

Friday, February 1, 2008

कुछ फिरंगी शायरी

पेश ऐ खिदमत है मशहूर जापानी शायर शुन्तारो तानीकावा कि कुछ लाइनें ,
समझना बहुत आसान है पर दिल पे ले तो बात होगी हुज़ूर !

खाली पेट एक बच्चा उदास था
क्योंकि खाली था उस का पेट
भरे पेट वाला एक राजा उदास था क्योंकि भरा हुआ था उस का पेट
बच्चे ने हवा की आवाज़ सुनी, राजा ने संगीत सुना
दोनों की आंखों में आए आंसू, यहां - इसी नक्षत्र पर।



Monday, January 28, 2008

कुछ शेर

कुछ नए शेर सुने .... अगर ब्लोग पर पेश ना करता तो बेईमानी होती !

चश्म ऐ पुरनम बही, बही, बही ना बही
ज़िंदगी है, रही, रही, ना रही
तुम तो कह दो जो तुमको कहना था
मेरा क्या है कही कही ना कही

यह मेरे आंसू जिन्हें कोई पोंछने वाला भी नही,
कोई आँचल इन्हें मिलता तो सितारे होते ।

मुश्किल का मेरी उनको मुश्किल से यकीं आया,
समझे मेरी मुश्किल को मगर बड़ी मुश्किल से।

बहुत रोए हैं उस आंसू की खातिर
जो निकलता है ख़ुशी की इन्तेहा पर

Friday, January 25, 2008

इंतज़ार

कितनी जल्दी ये मुलाक़ात गुज़र जाती है,
प्यास बुझती नही बरसात गुज़र जाती है
अपनी यादों से कह दो इस तरह न आया करे,

नींद आती नही और रात गुज़र जाती है

मेरी नज़र - तन्जीर भाई के ब्लोग से साभार

हमारे खास दोस्तो में से हैं तन्जीर भाई। पेशे से हमारी ही तरह नौकरी कि तलाश में लगे नए नए पत्रकार। उनका एक बड़ा धाँसू ब्लोग है अल फतह ! हाल ही में उस पर यह नज़्म... पसंद आई तो उठा ली ! अब दोस्तो की चीज़ें पूछ कर थोडे ही ली जाती हैं !

मेरी नज़र

यूँ भी आ मेरी आँख में कि मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो

वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो

मेरे बाजुओं में थकी-थकी, अभी मह्व-ए-ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो

कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ-साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो