हमारे खास दोस्तो में से हैं तन्जीर भाई। पेशे से हमारी ही तरह नौकरी कि तलाश में लगे नए नए पत्रकार। उनका एक बड़ा धाँसू ब्लोग है अल फतह ! हाल ही में उस पर यह नज़्म... पसंद आई तो उठा ली ! अब दोस्तो की चीज़ें पूछ कर थोडे ही ली जाती हैं !
मेरी नज़र
यूँ भी आ मेरी आँख में कि मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो
मेरे बाजुओं में थकी-थकी, अभी मह्व-ए-ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो
कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ-साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो
Friday, January 25, 2008
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