Friday, October 3, 2008

अदम गोंडवी ... के अंदाज़ में

ये दौर मुल्क के लिए मुश्किलों का दौर है.....भरोसा दोनों ओर का टूटा है और हालत रोज़ बा रोज़ बदसे बदतर होते जा रहे हैं ! ऐसे में अचानक आज शायर / कवि अदम गोंडवी की ये ग़ज़ल हाथ लगी तो सोचा ये सवा शेर आपकी नज़र कर दूँ ......तो पढ़ें और गुनें !

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये

अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है

दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये

ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले

ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये

हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ

मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये

छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़

दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये


No comments: