Friday, August 29, 2008

हाथ उठे हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं / फ़राज़

हाथ उठे हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं
की इबादत भी वो जिस की जज़ा कोई नहीं



ये भी वक़्त आना था अब तो गोश हर आवाज़ है
और मेरे बर्बाद-ए-दिल में सदा कोई नहीं



आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा के हम में बेवफ़ा कोई नहीं



वक़्त ने वो ख़ाक उड़ाई है के दिल के दश्त से
क़ाफ़िले गुज़रे हैं फिर भी नक़्श-ए-पा कोई नहीं



ख़ुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंज़िलें चारों तरफ़ है रास्ता कोई नहीं



कैसे रास्तों से चले और किस जगह पहुँचे "फ़राज़"
या हुजूम-ए-दोस्ताँ था साथ या कोई नहीं

Wednesday, August 27, 2008

फ़राज़ की यादें

ab ke ham bichhRe to shaayad kabhii KhvaaboN meN mileNjis tarah suukhe hu’e phuul kitaaboN meN mileN
(bichhRe : part company; Khvaab : dreams; suukhe : dry)
DhuuNDh ujRe hu’e logoN meN vafaa ke motiiye Khazaane tujhe mumkin hai KharaaboN meN mileN
(ujRe : ruined; motii : pearls; mumkin : possible; Kharaab : blemish)
tuu Khudaa hai na meraa ishq farishtoN jaisaadonoN insaaN haiN to kyuN itne hijaaboN meN mileN
(farishtoN: angels; hijaab : veil)
Gham-e-duniyaa bhii Gham-e-yaar meN shaamil kar lonashaa baRhtaa hai sharabeN jo sharaaboN meN mileN
(Gham-e-duniyaa : mondane sufferings; Gham-e-yaar : sufferings due to beloved; shaamil : incorporate; nashaa : intoxication; sharaabeN : wines)
aaj ham daar pe kheNche gaye jin baatoN parkyaa ajab kal vo zamaane ko nisaaboN meN mileN
(daar : gallows; ajab : surprise; zamaane : era; nisaaboN : benchmarks )
ab na vo maiN huN na tuu hai na vo maazii hai “Faraaz”jaise do saaye tamannaa ke saraaboN meN mileN
(maazii : past; saaye : shadows; tamannaa : desire; saraab : illusion, mirage)
Ahmed Faraz

अहमद फ़राज़ - बुझ गया चिराग

१४ जनवरी १९३१ को नव्शेरा पाकिस्तान मे एक बच्चे की विलादत हुई .इस बच्चे की सलाहियतों ने इसे आम से ख़ास बना दिया .इनके वालिद ने इनका नाम अहमद रखा जो आगे चल कर अहमद फ़राज़ के नाम से मशहूर हुए .आप ने पेशावर यूनिवर्सिटी से तालीम हासिल की .उर्दू और पर्शियन मे आपको महारत हासिल थी .आपकी शाएरी मे उस दौर के हालात का तफ्सेरा भी है और खुशनूदगी भी .अली सरदार जाफरी और फैज़ अहमद फैज़ जैसे शायेरों के साथ आपका नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है.२४ अगस्त २००८ को वाक़े अहमद फ़राज़ की वफ़ात अदबी माशरे के लिए ग़म का बाएस है ।
कठिन है राहगुज़र थोरी दूर साथ चलोबहुत करा है सफर थोडी दूर साथ चलो (kaThin : difficult; raahguzar : path) तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है मैं जानता हूँ मगर थोडी दूर साथ चलो नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नही बड़ा मज़ा हो अगर थोडी दूर साथ चलो ये एक शब् की मुलाक़ात भी ग़नीमत हैकिस है कल की ख़बर , थोरी duur saath chalo अभी तो जाग रहे हैं चिराघ राहों के अभी है दूर सहर थोडी दूर साथ चलो (sahar : dawn) तवाफे मंजिले जानां हमें भी करना है “फ़राज़ ” तुम भी agar थोडी दूर साथ चलो tavaaf-e-manzil-e-jaanaaN : circumabulation of the house of beloved) Ahmed Faraz